काश ! मैं कवि होता,
या परम्परावश मछेरा
दो में एक तो जरुर बुनता
जाल या शब्द-जाल|
एक से फंसती मछलियाँ,
दूसरे में उलझते लोग
या भ्रमित होते ,
शायद यह सोच कर क्रांति
का कोई स्वर
इनसे ही निकलेगा!!!
और स्वयं ठगे से रह जाते
जब सुनते
तमाशा ख़त्म,
नया खेल ब्रेक के बाद ??????????????????
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