चर्चा होती है गांवों में

चर्चा होती है अपनों में

चर्चा कहाँ नहीं होती है

चर्चा क्या है खूब बतकही

वो अपनों में  हो पाती है

चर्चा को परिवार चाहिए

नाते रिश्ते दार चाहिए

अपना घर संसार चाहिये

अपनापन अपनत्व चाहिए

प्यार नाम का तत्व चाहिए

कहीं प्रेम के बोल नहीं है

चर्चा का माहौल नहीं है

चर्चा में अब कितना दम है

मन की बातों का मौसम है

यूँ भी अब सब बदल रहा है

गांव शहर को निकल रहा है

फिर भी हम भूले जाते हैं

गांवों में रिश्ते नाते हैं

गांवों में इक अपनापन है

गांवों का यौवन बचपन है

शहरों में क्या अपनापन है

शहरों से गायब जीवन है

गांव गांव है शहर शहर है

हम जीये खाये जाते हैं

पर सच झुठलाए जाते हैं

गांवों से ज्यादा गंवार अब

शहरों में पाए जाते हैं।।

यह भी भ्रम है पढ़े लिखों में

संस्कार पाये जाते हैं।।

सुरेश साहनी

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