ये नंग वो धड़ंग हैं मालूम ही न था।
दुनिया के इतने रंग हैं मालूम ही न था।
है कोफ्त उससे मांग के मायूस जो हुए
मौला के हाथ तंग है मालूम ही न था।
दौलतकदो से यूं न मुतास्सिर हुए कभी
फितरत से हम मलंग हैं मालूम ही न था।।
है डोर उस के हाथ सुना था बहुत मगर
जीवन भी इक पतंग है मालूम ही न था।।
ये छल फरेबो गम ये ज़हां भर की जहमतें
सब आशिकी के अंग हैं मालूम ही न था।।
सुरेश साहनी कानपुर
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