कोई खुशबू में ढाला जा रहा है।
कोई कांटों में पाला जा रहा है।।
कमी है जबकि तेरे मयकदे में
समन्दर क्यों खंगाला जा रहा है।।
हलाहल शौक से मुझको पिला दो
अगर अमृत निकाला जा रहा है।।
यक़ीनन देश की जनता ही होगी
जिसे वादों पे टाला जा रहा है ।।
कोई ज़रदार भूखा रह गया क्या
गरीबों का निवाला जा रहा है।।
मुसलसल हो रहे हैं जब चिरागां
किधर आख़िर उजाला जा रहा है।।
जनाजा देखकर अगियार बोले
वो देखो इश्क़ वाला जा रहा है।।
सुराख होना है इक दिन आसमां में
अभी पत्थर उछाला जा रहा है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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