फिर मुझे ग़मशनाश कर डाला।

याद आ कर उदास कर डाला।।

देखकर इक निगाह भर तन का

जाम आधा गिलास कर डाला।।

उन निगाहों के  खंज़रों ने मुझे

देख कर बेलिबास कर डाला।।

मेरी चर्चे गली गली करके

बेवज़ह मुझको ख़ास कर डाला।।

संगदिल वो तो देवता न हुआ

पर मुझे बुततराश कर डाला।।

उसने ख़्वाबों में वस्ल को लेकर

जाने क्या क्या क़यास कर डाला।।

उसकी वहशत थी या हवस या जुनूँ

पर हमें बदहवास कर डाला।।

सुरेश साहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है