न मैं धरती न था आकाश जैसा।

मैं होकर भी रहा आभास जैसा।।


समय ने गोद से हर क्षण उतारा

मनाया कब किसी ने कब पुकारा

कटा जीवन किसी वनवास जैसा।।


कभी व्राजक कभी बन कर भिखारी

कटी यायावरी में उम्र सारी

चला हूं उम्र भर अभ्यास जैसा।।


तुम्हारे बिन कहां कैसा ठिकाना   

रहा हर दिन यही खाना कमाना

कभी व्रत तो कभी उपवास जैसा ।।


सुरेश साहनी कानपुर

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