भीगा पड़ा शहर सावन है।
और टपकता घर सावन है।।
अड़चन लिए सफर सावन है
कीचड़ भरी डगर सावन है।।
झोपड़ियों में जाकर देखो
टूट चुका छप्पर सावन है।।
कहीं बाढ़ में बह ना जाये
गांव गली का डर सावन है।।
ठहर गयी है रोजी रोटी
ऐसी दिक़्क़त भर सावन है।।
राशन पानी खत्म मजूरी
हम पर एक कहर सावन है।।
कहने वाले कह देते हैं
शिव बमबम हरहर सावन है।।
हम ऐसा भी कह सकते हैं
रोगों का दफ्तर सावन है।।
आप भले माने ना माने
ऐसे ही मंज़र सावन है।।
कैसे माने कैसे कह दें
फागुन से बेहतर सावन है।।
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