मुझसे मेरा ही वक्त ठहरकर नहीं मिला।
खुशियों को साथ लेके मुकद्दर नहीं मिला।।
जब ठौर मिल गया तो ठिकाना नहीं मिला
ठिकाना मिला तो रुकने का अवसर नहीं मिला।।
दरिया के जैसे चलके यहाँ आ गए तो क्या
सहरा मिला यहाँ भी समुन्दर नहीं मिला।।
ताउम्र भटकते रहे जिसकी तलाश में
उस घर के जैसा हमको कोई घर नहीं मिला।।
दीवार मिल गई तो कभी छत नहीं मिली
छत मिल गयी तो मुझको मेरा सर नहीं मिला।।
सोचा था मक़बरा ही क़यामत तलक रहे
तो इस मियाद का कोई पत्थर नहीं मिला।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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