भीगते हो बारिशों में

धूप में भी जल रहे हो

ओ पथिक कितने अराजक हो सड़क पर चल रहे हो।।

धूप में चेहरा झुलसता

ओष्ठ फटते सर्दियों में

और बारिश के दिनों में धान लेकर गल रहे हो।।

तुम बिजूका बन के खेतों में 

खड़े मिलते हो अक्सर

किन्तु अब पंछी तनिक डरते नही है ढल रहे हो।।

गाँव की पगडंडियों से 

जो सड़क आ पर गए हो

झोपड़ी जैसे महल के सामने हो खल रहे हो।।

आज की सरकार तुमको

बोझ जैसा मानती है

पालते हो देश को, क्यों श्वान जैसे पल रहे हो।।


सुरेश साहनी कानपुर

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