मेरी ग़ज़लें बहर से बाहर हैं।
मेरी नज़्में असर से बाहर हैं।।
कब तलक उनको याद में रखें
जो हमारी नज़र से बाहर हैं।।
ये सियासत है आपकी मंज़िल
और हम इस सफ़र से बाहर हैं।।
हम भी थे हक़ के रहनुमाओं में
अब हुकूमत के डर से बाहर हैं।।
जाने किसके ख़याल में हैं गुम
घर में होके भी घर से बाहर हैं।।
हम गये वक्त के सितारे हैं
आज़कल हर ख़बर से बाहर हैं।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment