हम भला तुमसे और क्या लेते।

इक ज़रा हाले-दिल सुना लेते।।


तुमको हमपे यक़ीन हो जाता

तुम अगर हमको आज़मा लेते।।


ये अदावत चलो पुरानी है

यार खंजर तो कुछ नया लेते।।


हम भी कुछ मुतमईन हो जाते

तुम बहाना कोई बना लेते।।


हम तुम्हारी नज़र से राजी थे

ख्वाब पलकों पे कुछ सजा लेते।।


कर गुजरते तेरी रज़ा पे हम

हम तुम्ही से तुम्हे चुरा लेते।।


ये मेरा दिल हैं इश्कगाह नही

और कितनों को हम बसा लेते।।


Suresh Sahani, Kanpur

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