वहां ऊँची इमारत जो खड़ी है।
उसी के पास अपनी झोंपड़ी है।।
यहाँ जो आर्थिक असमानता है
यही संघर्ष की पहली कड़ी है।।
यहाँ हर शख्स खुद से जूझता है
यहाँ हर एक को अपनी पड़ी है।।
मुझे अच्छी सुबह देने की खातिर
मेरी माँ नींद से वर्षों लड़ी है।।
हमारी कौम को जीने की खातिर
बहुत कुर्बानियां देनी पड़ी हैं।।
सुरेशसाहनी
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