शौक़ उनका बहुत पुराना है
हर किसी शय पे रीझ जाना है।।
उनपे कोई यक़ीन ना बाबा
हर भरोसे को टूट जाना है।।
न्याय बिकता है क्या कहें लेकिन
आज बाज़ार का ज़माना है।।
हँसते देखा नहीं सितमगर को
हमको हँस कर सितम उठाना है।।
ज़िन्दगी दर्द का तरन्नुम है
जिस तरह भी हो गुनगुनाना है।।
सुरेश साहनी
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