अभी दुनिया कसैली हो गयी है।

हवाएं भी विषैली हो गयी है।।

कहूँ कैसे  बदन-शफ्फ़ाक़ हूँ मैं

नज़र उसकी जो मैली हो गयी है।।

जवानी में जो महफ़िल लूटती थी

वो अब कितनी अकेली हो गयी है।।

वो खुशियां बांटती थी दोस्तों में

जो अब ग़म की सहेली हो गयी है।।

किसी की आँख का पानी मरा है

नज़र अपनी पनीली हो गयी है।।

वो नेता बन के आएं हैं ग़मी में

ज़नाज़ा है कि रैली हो गयी है।।

अभी उनको तवज्जह कौन देगा

बिगड़ना उनकी शैली हो गयी है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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