मैं हाथ मे गुलाब लिये सोचता रहा।
आंखों में तेरे ख़्वाब लिए सोचता रहा।।
तुमने बड़े सवाल किये और उठ लिए
मैं मुख़्तसर जवाब लिए सोचता रहा।।
प्याले थे आरिज़ों के मेरे सामने मगर
शीशे में मैँ शराब लिए सोचता रहा।।
अंजामे-वस्ल लुत्फ़ का कातिल न हो कहीं
मैँ कैफ़-ए-इज़्तिराब लिए सोचता रहा।।
वो बरहना मिज़ाज़ लिए नाचते रहे
मैँ हाथ में नक़ाब लिए सोचता रहा।।
सुरेशसाहनी कानपुर
मुख़्तसर/संक्षिप्त
आरिज़/होठ
अंजामे-वस्ल/संसर्ग का परिणाम
लुत्फ़/आनन्द
कैफ़-ए-इज़्तिराब /धैर्य का आनन्द
बरहना मिज़ाज़/ नंगापन
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