मेरे पास भला क्या है एक ठो जमीर है।

और उसे बिकवाने को सारे अधीर हैं।।

धारा के विरुद्ध हमें चलने की आदत है

अनगिनती दरबारी हैं एक ही कबीर है।।

सुरेश साहनी

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