चलो न यूँ करें
हम तुम यहीं से लौट चलें
सफर से तुम भी
थक चुके हो
हम भी आज़िज़ है
तुम्हारी राह कई देखते हैं हसरत से
न जाने कितने सहारे बड़ी मुहब्बत से
मैं क्यों कहूँ तुम्हे चाहा है हमने शिद्दत से
नहीं है प्यार तो कोई सफर है बेमानी
अगर न दिल मिले तो हमसफ़र है बेमानी
वो रौनकें-फ़िज़ां-ओ-रहगुज़र है बेमानी
चलो कि मुड़ चलें राहों में शाम से पहले
चलो कि तुमको नया हमसफ़र तो मिल जाये
चलो कि हम भी कोई ग़मगुशार तो पा लें
कि मयकदा हमें और तुमको घर तो मिल जाये
सफ़र से तुम भी थक गये हो
हम भी आज़िज़ हैं......
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