कभी दावा नही करता
मैं शायर हूँ नही भी हूँ।।
मेरा होना न होना है
मैं हाज़िर हूँ नहीं भी हूँ।।
मेरे अंदर के इन्सां के
मैं मिट जाने से डरता हूँ
बिलाहक झूठ क्यों बोलूं
मैं कायर हूँ,नहीं भी हूँ।।
मुझे चलते ही जाना है
या तुर्बत ही ठिकाना है
मैं इन अनजान राहों का
मुसाफ़िर हूँ नही भी हूँ।।
बनाया तुझको होने ने
मिटाया मुझको होने ने
तू होकर भी नही दिखता
मैं ज़ाहिर हूँ नही भी हूँ।।
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