हुस्न ख़ुद पर निगाह मांगे है।

दिल भी करना गुनाह मांगे है।।


इश्क़ की चाल है बड़ी बेढब

हर घड़ी दिल से राह मांगे है।।


उस दीवाने को कौन समझाए

उस से आलम पनाह मांगे हैं।।


इश्क़ उसको अज़ल से है लेकिन

वक़्ते- क़ुर्बत कोताह मांगे हैं।।


यार की ज़ीस्त में उजाले और

अपनी रातें सियाह मांगे है।।


सिर्फ़ दो ग़ज़ ज़मीन दे मौला

यार कब ख़ानक़ाह मांगे है।।


अब समन्दर पटक रहा है सिर

आदमी है कि थाह मांगे है।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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