मोमिन सादिक़ निगाह है क्या।
हिन्दू होना गुनाह है क्या।।
दिल काफ़िर को दे न सकोगे
इश्क़ मुहब्बत निकाह है क्या।।
इश्क़ से बढ़ के कोई मज़हब
कोई नई रस्मो राह है क्या।।
तमाम दुनिया तो कर रही है
कि शिर्क रस्मन गुनाह है क्या।।
जो कल थी इतनी हसीन दुनिया
अब इश्क़ से ही तबाह है क्या।।
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