आरज़ू  करती रही  गुंजाइशें।

ज़िन्दगी  करती रही अज़माइशें।।

लुत्फ़ उनकी ख़िदमतों में मर गया

और वो  करती रही फरमाईशें ।।

जो न आदम कर सका था चाहकर

काम वो  करती रहीं पैदाईशें ।।

आख़िरी दम तक रहें हम मुन्तज़िर

दम ब दम बढ़ती रही है ख्वाहिशें।।

लब तलक आकर भी तिश्ना लब रहे

मयकदे तक आ गयी हैं साजिशें।।

बेक़रारी ने कहाँ देखीं हदें

आप भी अब तोड़ दीजै बंदिशें।।

मेरी मन्ज़िल कब हमें मालूम थी

इस जगह लायी समय की लग्जिशें।।

सुरेशसाहनी कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है