इतिहास

नहीं करेगा मुझे माफ़

जानते हो

जब  मुझे आज के हालात पर

लिखना था

आवाज़ उठाना था

हवा में मुट्ठियाँ लहरानी थी

तब मैं वक़्त के गालों पर

ग़ज़ल लिख रहा था

नीरो की तरह

ठीक उस समय

जब मेरे दोस्त 

दमन का शिकार हो रहे थे......

#सुरेशसाहनी,कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है