रास्ते पगडंडियों के साथ हैं
या कि उनके साथ है पगडंडियां।
रास्तों को व्यर्थ का अभिमान है
वो घटाते हैं दिलों की दूरियां।।
हम मुसाफ़िर हैं हमें मालूम है
फासलों की मन्ज़िलों से यारियां
अपनी मर्जी अपने मकसद से चले
किसने पूछी रास्तों से मर्जियाँ
अपनी जिद थी चल दिये तो चल दिये
हमने कब की कूँच की तैयारियां।।
सुरेशसाहनी कानपुर
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