कितनी नफरत ज़ेहन में रखते हो।

ख़ुद को दौरे-कुहन में रखते हो।।


घर ही अपना जला न बैठो तुम

रिश्ते शक़ के दहन में रखते हो।।


क्या ज़माना है अपने वालिद को

घर से बाहर सहन में रखते हो।।


हो लिबासों पे इतने माइल क्या-

रूह भी पैरहन में रखते हो।।


इतनी शीरी ज़ुबान है फिर भी

कितनी तल्ख़ी कहन में रखते हो।।


1.ज़ेहन/मष्तिष्क, 2. दौरे-कुहन/पुराने समयकाल 

3.दहन/ मुख, 4.सहन/दालान,5.माइल/आसक्त,

6.पैरहन/वस्त्र, 7.शीरी/मीठी

8.तल्ख़ी/कड़वाहट


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है