प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत गांव में कुछ आवासहीन लोगों को आवास देना तय हुआ था। राम जी के पास मकान के नाम पर एक टूटी झोंपड़ी मात्र थी। कई बार उस पर कब्जा करने की कोशिश की गई थी। पिछली बार जब भगीरथ यादव प्रधान बने तो उन्होंने राम जी को यह स्थान छोड़ने के लिए कह दिया था। लेकिन पुराने प्रधान वकील अहमद ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया था। दरअसल पारिवारिक विवाद में राम जी के बेघर होने के बात पंचायत से ग्राम समाज की जमीन पर यह छोटा सा पट्टा उनके नाम कर दिया गया था।
राम जी इसी गांव में पैदा हुए ।यहीं खेले खाये,बड़े हुए और वह समय भी आया जब प्रौढ़ावस्था में उन्हें अपने इस गाँव के निवासी होने का प्रमाण पत्र बनवा कर देना पड़ा था।उन्हें उस समय बहुत तकलीफ हुई थी।तत्कालीन प्रधान ने उनसे इस बात के लिए 100 रुपये ले लिए थे।उन्हें बाद में पता चला था कि इसकी कोई फीस नहीं पड़ती थी।
ख़ैर उनकी झोपड़ी की जगह एक सुंदर सा लिंटरदार मकान खड़ा था जो उनकी झुक चुकी झोंपड़ी से ढाई गुना ऊँचा था।दरअसल यह इस योजना का पहला निर्माण था जिसे दिखाकर शेष योजना का मात्र पैसा पास कराना था।वैसे भी प्रधान ने अब तक किसी काम के नाम पर मुँहचौरी ही की थी।
प्रधान ने बड़े गर्व के साथ रामजी को अभिवादन किया और कहा," क्या राम जी इतने साल से सर्दी गर्मी बारिश झेल रहे थे।अब मकान बनवा दिए हैं ,कैसा लग रहा है?,
राम जी ने आशीर्वाद की मुद्रा में मुस्कुराते हुए हाथ उठा दिया। प्रधान को जैसे उनका आशीर्वाद देना अच्छा नहीं लगा।प्रधान ने कहा "अरे उ तो ठीक है.आगे चुनाव में ध्यान रखिएगा.आपका वोट इधर उधर नहीं जाना चाहिए, का समझे?
राम जी ने कहा बेटा जो काम करेगा वही वोट पायेगा। डराने धमकाने वाले को वोट तो मैंने आज तक नहीं दिया।आगे की आगे देखी जाएगी। प्रधान कुछ झुंझला कर निकल लिए ।
राम जी अब भी मन्द मन्द मुस्कुरा रहे थे।
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