आंखों के समन्दर में खजाने न ढूँढिये।

दिल भर चुका है इसमे ठिकाने न ढूंढिये।।


इक बार तर्क़ कर लिया रिश्ता ख़ुद आपने

अब  फिर से क़ुर्बतों के बहाने न ढूंढिये।।


हम आज भी हक़ीक़तों के पायेदार हैं

हममें जहान भर के फसाने न ढूंढिये।।


साजे-दिले-शिकस्त से सुर फूटते नहीं

इसमें मुहब्बतों के तराने न ढूँढिये।। 


एक अज़नबी शहर हुआ दिल टूट कर मेरा

गलियों में इसकी फिर से यगाने न ढूंढिये।।


सुरेश साहनी ,कानपुर

9451545132

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