आदर्श पर अब ढोंग हावी हो गया है।
दरअसल मौसम चुनावी हो गया है।।
नब्ज़ पढ़ना भी जिसे आता नहीं
वो भी लुकमान-ओ- मदावी हो गया है।।
कल तलक जो था मुरीदे-सीकरी
सुन रहा हूँ वो बहावी हो गया है।।
जिसकी फितरत है दलाली वो भी अब
मजलिसों में इंक़लाबी हो गया है।।
मैंने सच बोला तो सब कहने लगे
लग रहा है ये शराबी हो गया है।।
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