मित्रों के ये हंसमुख चेहरे

जैसे कई गुलाब खिले हों।

जैसे अभी अभी  सब साथी

अपने घर ही आन मिले हों।।


ये ही मिलना हंस-बतियाना

बात-बतंगड़ हंसी-ठिठोली।

नित नित मेले नित नित उत्सव

नित दीवाली नित नित होली।।


सबसे दूर अगर है डेरा

अर्थहीन है साँझ सबेरा।

आना जाना जाना आना

जीवन जोगी वाला फेरा।।


अगर मित्र संग हैं तो रद्दी-

पेपर  बन जाता है थाली।

मित्रों की संतृप्ति यही है

हर गिलास हो जाये खाली।।

सुरेशसाहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है