बेख़ुद करना शर्त जहाँ थी ।

पैमाने की बात कहाँ थी  ।।

साकी का नासेह से मिलना

जाने क्यों महफ़िल हैरां थी।।

तब तुम भी माशाअल्ला थे

महफ़िल भी तब और जवां थी।।

तुम शहरों की पैदाइश हो

अपनी अज़दादें दहकां थी।।

तुम आज़ाद ख़याल बने हो

अपनी क़िस्मत ही ज़िंदां थी।।

#सुरेशसाहनी

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