बात कोई बुरी ना लगे।

रंग काँटा छुरी ना लगे।।


ये भी होली की तासीर है

कोई धुन बेसुरी ना लगे।।


जाने किस रंग में रंग गयी

फिर भी प्रेयसि बुरी ना लगे।।


ऐसी ससुराल क्या जो हमें

ज़िन्दगी की धुरी ना लगे।।


डर रहा हूँ नशे में कहीं

भैंस भी माधुरी ना लगे।।


मान लो खुद को बूढ़ा अगर

वो छुए सुरसुरी ना लगे।।


कृष्ण ने मन छुआ ही नहीं

तन अगर बांसुरी ना लगे।।


कैसे मानें कि होली हुई

जब कि मुख वानरी ना लगे।।


यूँ रंगों प्रेम के रंग में

भाव भी आसुरी ना लगे ।।


सुरेश साहनी ,कानपुर

( रामकिशोर नाविक  भैया से प्रेरित )

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है