राजनीति मत करो इसे होली ही रहने दो।

दूर गंदगी करो   रंग रोली ही रहने दो ।।

ओवैसी तोगड़िया लगे दलाल विदेशी है

 ये कबीर की  प्रेम भरी बोली ही रहने दो।।


जीजा साली , देवर भाभी रस में डूबे हैं

पर रिश्तों में सीमित हंसी ठिठोली रहने दो।

रंग लगाओ  प्रेम रंग में खुद  भी रंग जाओ 

पर कोरी रिश्तों की चूनर चोली रहने दो।।


होली क्या होलियारों की मस्तों की टोली है।

क्या ये केवल राग रंग या हंसी ठिठोली है।।

कबिरा सूर और मीरा ने इसे संवारा है

या रसखान रहीम बोलते थे वह बोली है।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है