मुझको मालूम है क्या लगता हूँ।
इश्क़ हूँ फिर भी फ़ना लगता हूँ।।
ख़्वाबे-क़ुर्बत से निकल भी आओ
खंडहर हूँ मैं नया लगता हूँ।।
बद्दुआओं के शहर में गोया
मैं बुजुर्गों की दुआ लगता हूँ।।
लोग जब मुझको पढ़ा करते हैं
उनकी गज़लों में कहा लगता हूँ।।
क्यों मुझे याद किया करता है
आज भी क्या मैं तेरा लगता हूँ।।
मेरी तुर्बत का पता पूछे हो
क्या मैं दुनिया से गया लगता हूँ।।
हुस्न वालों ये गुमाँ ठीक नहीं
मैं मुहब्बत का खुदा लगता हूँ।।
सुरेश साहनी , kanpur
9451545132
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