लगाम छुट गई रकाब तो सलामत है।
चिलमने न सही हिजाब तो सलामत है।।
शहीद जो हुए हम मादरे वतन के लिए
वुजूदे गंग -ओ-चिनाब तो सलामत है।।
कि अहले जुल्म तेरा दौर है न हो मायूस
तुम्हारा दार मेरा ताव तो सलामत है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
लगाम छुट गई रकाब तो सलामत है।
चिलमने न सही हिजाब तो सलामत है।।
शहीद जो हुए हम मादरे वतन के लिए
वुजूदे गंग -ओ-चिनाब तो सलामत है।।
कि अहले जुल्म तेरा दौर है न हो मायूस
तुम्हारा दार मेरा ताव तो सलामत है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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