सुनहरी धूप का आँचल लहक जाता है जाने क्यों।
भ्रमर एक फूल से मिलकर महक जाता है जाने क्यों।।
अभी तो रात की रानी ने घूंघट भी नहीं खोला
क्षितिज पर तब कोई सूरज ठिठक जाता है जाने क्यों।।
सपन जिस गाम पर टूटे जहाँ पर हम गये लुटे
उसी मकतल पे आकर मन अटक जाता है जाने क्यों।।
किसी की मदभरी आँखें किसी की रसभरी बातें
ये मन भी देख कर सुनकर बहक जाता है जाने क्यों।।
अचानक सामने पड़कर नज़र उसका झुका लेना
मगर उस शोख़ का आँचल सरक जाता है जाने क्यों।।
Comments
Post a Comment