जाने किससे मुझे मुहब्बत थी।
आपकी इक यही शिकायत थी।।
मेरे मरने पे उज़्र है जिनको
मेरे जीने से भी अज़ीयत थी।।
उसने मुझको ज़मी पे क्यों भेजा
जबकि उसको मेरी ज़रूरत थी।।
उसकी बख्शीश है शराब मगर
शेख की और ही नसीहत थी।।
मैंने ख़ुद को बड़ा नहीं समझा
ये मेरे अज़्म से बगावत थी।।
मैंने यदि उसको पा लिया होता
शिर्क की फिर किसे ज़रूरत थी।।सुरेश साहनी
Comments
Post a Comment