तुम गुलाब की पंखुड़ियों सी

मैं पलाश के फूलों जैसा।

साथ हमारा भी निभ जाता

यदि होता मैं शूलों जैसा


हमे सहारा दिया सड़क ने

तनहाई ने पाला पोसा

डिगते विश्वासों को फिर फिर

आशाओं ने दिया भरोसा


किस्मत थी कोरे कागज सी

मन सतरंगी झूलों जैसा।। तुम गुलाब की...


अब भी अमलताश झरते है

अब भी गुलमोहर गिरते हैं

जिन राहों से तुम आती थी

अब भी टेसू पथ तकते हैं


अब भी मैं  निसदिन फिरता हूँ

उन पर भटका-भूलों जैसा।। तुम गुलाब....


स्मृतियों में तुम राधा हो

प्रीति हमारी श्याम सरीखी

जीवन कानन फिर हरियाये 

यदि बरसो घनश्याम सरीखी


मन मीरा की मस्ती पा ले

तन रसखान रसूलों जैसा।। तुम गुलाब...

सुरेशसाहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है