वेदना क्या थी हृदय से बोझ कम करते रहे।

आँख पथराने न पाये रो के नम करते रहे।।...


दूसरों को क्या लगा हमने कभी सोचा नहीं

दूसरो को क्या बताते तुम ने जब पूछा नहीं


और राहत के लिए खुद पे सितम करते रहे।।

वेदना क्या थी हृदय से बोझ कम करते रहे ।...


तुम गए मर्जी तुम्हारी हर कोई आज़ाद है

हम लुटे नियति हमारी व्यर्थ का अवसाद है


लौट कर तुम आओगे हाँ ये वहम करते रहे।।

वेदना क्या थी ह्रदय से बोझ कम करते रहे ।....


प्रेम क्या है मूढ़ता है  बचपना है वेदना 

प्रेम क्या है मन कुसुम को कंटकों से भेदना


और ऐसी मूढ़तायें  हम स्वयम् करते रहे।।

वेदना क्या थी हृदय से बोझ कम करते रहे।....

सुरेशसाहनी, कानपुर

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