फिर ख्यालों में झुला ले मुझको।

फिर से ख़्वाबों में बुला ले मुझको।।


तेरी यादों में  बहुत जागा हूँ 

अपने पहलू में सुला ले मुझको।।


तुझको लगता है बहुत खुश हूँ तो

आज जी भर के रुला ले मुझको।।


इक दफा प्यार जता झूठ सही

मुझको बहला ले भुला ले मुझको।।


एक गुब्बारे सा उडूँगा फिर मैं

प्यार से अपने फुला ले मुझको।।


बेच दूँ ख़ुद को फ़क़त तेरे लिए

कौड़ियों में न तुला ले मुझको।।


ज़िन्दगी पर तुझे शक़ है तो सुरेश 

आ हिला और डुला ले मुझको।।


सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है