हम ख़ुद अपने शेर ज़ुबानी भूल गए।
ऐसे ही हर बात पुरानी भूल गए।।
मेरी ग़ज़लें वो भी गाया करते हैं
जो जो मेरा मिसरा सानी भूल गए।।
दुनिया अपने ग़म में जब मशरूफ़ मिली
हम भी अपनी राम कहानी भूल गए।।
तुम कितने नटखट थे तुमको याद नहीं
हम भी बचपन की शैतानी भूल गए।।
भूल गए तुमने मेरा दिल तोड़ा था
छोड़ो हम भी वो नादानी भूल गए।।
सुरेश साहनी,कानपुर
Comments
Post a Comment