इस शहर में मकान ले लेगा।

उस शहर में दुकान ले लेगा।।


और दो दिन रहा जो दुनिया में

लग रहा है जहान ले लेगा।।


कल ही उसने ज़मीन छोड़ी है

आज क्या आसमान ले लेगा।।


मुझमें जो शख़्स फड़फड़ाता है

क्या कफ़स की भी जान ले लेगा।


प्यार की आबरू तो रहने दे

क्या ये झूठा गुमान ले लेगा।।


ज़ीस्त तुझको सफ़र में ले आकर

वक़्त हर सायबान ले लेगा।।


मुझको मालुम है मौत से पहले

मुझमें कोई उड़ान ले लेगा।।


सुरेश साहनी , कानपुर 

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है