आज नहीं तो कल बिछड़ेंगे ।

कब तक एक शाख पर होंगे।।

आंधी और तूफान बने हैं

बान और संधान बने हैं

कभी शाख चरमरा उठेगी

कभी धरा ही डगमग होगी

पतझर कभी कभी बरसातें

xमौसम से भी बढ़कर घातें

आज आदमी कर सकता है

हद से नीचे गिर सकता है

जीवन है तो द्वन्द बहुत है

उलझन अतिशय बन्ध बहुत है

कब तक तुम इनसे भागोगे

कब तक किसका शोक करोगे

बीत गयी यदि मधू यामिनी

रूठ गयी यदि अंक शायिनी

तब क्या राग विहाग करोगे

कितने दिन बसंत  के होंगे

उठो आज ही पीकर हाला

बन जाओ प्रेमी मतवाला

कल न मिलेगी यह मधुशाला

कल न पिलाएगी यह बाला

कल न रहेगी यौवन हाला

प्यासा और पिलाने वाला

तब केवल अफ़सोस करोगे

कितने दिन बसंत के होंगे

कितने दिन बसंत के होते

याद  करोगे रोते रोते

तब जाने तुम कहाँ रहोगे

तब जाने हम कहाँ रहेंगे

कब तक एक साथ हम होंगे

एक न एक दिन तो बिछुड़ेंगे।।

                 सुरेश साहनी कानपुर

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