मेरी परतें मेरा परदा नहीं है।

जो दिखता है मेरा चेहरा नहीं है।।

वो खुश है हँसता खेलता है

हक़ीक़त में बशर ऐसा नहीं है।।

कई क़िरदार शक्लें भी कई हैं

यहाँ का आदमी क्या क्या नहीं है।।

किसे सूली चढ़ाओगे यहां अब

कोई मंसूर या ईसा नहीं है।।

मुहब्बत क्या है बस बातें क़िताबी

क़िताबें अब कोई पढ़ता नहीं है।।

कभी इन्सान रहते थे यहाँ भी

गया वो दौर अब ऐसा नहीं है।

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