चलो शिक़स्त को हम जीत मान लेते हैं।
वो कौन हैं जो मेरा इम्तेहान लेते हैं।।
पुराने शहर में हवेली नई कहाँ मुमकिन
नए शहर में पुराना मकान लेते हैं।।
नई फसल है नया खून है परिंदों में
ये देखना है कहाँ से उड़ान लेते हैं।।
यूँ तो हम कहने में रत्ती यकीं नहीं रखते
वो कर गुजरते है जो दिल में ठान लेते हैं।।
कमाल है कि कयामत हैं उनकी आँखों में
नज़र झुका के वे कितनों की जान लेते हैं।।
हमारे दोस्त भी गोया कोई नजूमी हैं
कि दिल की बात निगाहों से जान लेते हैं।।
आज जा रहे हैं चढ़ के चार कन्धों पर
कहा किये थे कहाँ एहसान लेते हैं।।
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