आज सुबह कुछ जागरूक बुजुर्ग और कुछ भूतपूर्व युवा जोर शोर से निवर्तमान हालातों पर चर्चा में मशगूल थे। मैं भी उनसे कुछ दूरी पर बैठा था।चर्चा में एक साथ भारत पाकिस्तान हिन्दू मुसलमान अमेरिका चीन क्रिकेट फुटबॉल टीवी सीरियल, फ़िल्म आदि यानी लगभग मुल्क के हर मामले - मसअले उनकी चकल्लस में शामिल थे।उनमें एक बुज़ुर्ग ने बीजेपी की टिकट सूची में आडवाणी जी के नाम नहीं होने और उनके योगदान पर चर्चा करते हुए उनकी तारीफ करी। मुझे लगता है वे आडवाणी जी के प्रति संवेदनशील थे।
दूसरे सज्जन ने प्रतिवाद किया,
- " बौड़म हो का? अबे वो बाजपेई जी के पसङ्गा भी नहीं थे और ना होइहैं। वो बुड्ढा पद का लालची है। उसे तो खुदै हट जाना चाहिए।हाँ नहीं तो!!!
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