सिर्फ़ पाना यही अहम है क्या।

ग़म नहीं है इसी का ग़म है क्या।।

आईना है कोई कोई पत्थर 

मेरे जैसा कोई सनम है क्या।।

अहले- महफ़िल से हम भी रब्त नहीं

देखना उसकी आँख नम है क्या।।

साथ चलने से पहले तय कर लो

आपका यह सही कदम है क्या।।

लग्जिशें इतनी इस मुहल्ले में 

एक यही दैर ओ हरम है क्या।।

चांदनी उसके दम से फैले है

हुस्न को भी यही भरम है क्या।।


सुरेश साहनी

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