आँखों पर पट्टी बांधो सुविधाएं लो।

किसने तुमको बोला सच की राह चलो।।

सच दिख जाये तो दाएं बाएं ताको

कोई पूछे सच उल्टा सीधा बोलो।।


कान नहीं होते हैं अब दीवारों के

अब जनता भी आँखे मूंदे रहती है।

आज द्रौपदी जितना चीखे चिल्लाये

दुःशासन से  जनता सहमत रहती है।।


कभी राम से सत्ता छीनी जाती है

कभी विभीषण को सत्ता दी जाती है।।

कभी अंगूठा एकलव्य का कटता है

और धर्म की मर्यादा रह जाती है।।


राजनीति पासा चौसर चौपाटी है।

भैंस उसी की होगी जिसकी लाठी है।।

मत अधीर हो ऐसा होता आया है

लोकतंत्र का चीरहरण परिपाटी है।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है