तब यूँ बिगड़े हालात न थे।

जातें थीं हम बदजात न थे।।

दिन रात तो होते थे तब भी

पर ऐसे दिन और रात न थे।।

तब की दो कौड़ी काफी थी

हम इतने कम औकात न थे।।

बेहतर थे अब के बेहतर से

इंसां थे आदमजात न थे।।

तुम मीरा कैसे हो पाती

हम खुद शंकर सुकरात न थे।।

हम भी सूली चढ़ सकते थे

हम पर भी इल्ज़ामात न थे।।

#सुरेशसाहनी

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