आज सचमुच मुझे आराम नहीं मिल पाया।

ढूंढ़ कर थक गया पर काम नहीं मिल पाया।।


और ज्यादा मैं थका हार के तब घर लौटा

जब कि मेहनत का सही दाम नहीं मिल पाया।।


वक़्त के अब्र शरारात पे आमादा थे

चाँद आकर के सरेबाम नहीं मिल पाया।।


वो तो हर वक़्त उजालों में घिरा रहता है

तीरगी में भी किसी शाम नहीं मिल पाया।।


वक़्त से एक शिकायत तो है अफसोस नहीं

क्यों मेरे इश्क़ को अंजाम नहीं मिल पाया।।


सुरेश साहनी, कानपुर 

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है