गजलें रूहानी कहता है 

दुनिया को फ़ानी कहता है ।

ना माज़ी ना मुस्तकबिल की

बातें दरम्यानी कहता है।।


सच को सच कह देने वाली

उसमें यह बीमारी तो है

दूध अगर है दूध कहेगा

पानी को पानी कहता है।।


जब बौने तक अपने लंबे

साये पर इतरा उठते हैं

वह कहता है ख़ुद को अदना

सचमुच लासानी कहता है।।


शायद वह सचमुच मूरख है

या कुछ ज्यादा ही है ज्ञानी 

ख़ुद अनजान बना रहता है

औरों को ज्ञानी कहता है।।


यूँ मंचों पर कम आता है

पर आते ही जम जाता है

ग़ज़ल कहो तो नज़्म पढ़ेगा

अपनी मनमानी कहता है।।


बेशक़ पागलपन की हद तक

उसने प्यार किया है लेकिन

उस पर माइल हो जाने को

मेरी नादानी कहता है।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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