सोच रहा हूँ अब क्या लिक्खूं।

गीत ग़ज़ल या कविता लिक्खूं।।

सब लिख डाला अजदादों ने

उन बातों को कितना लिक्खूं।।

अर्थ अनर्थ अनर्गल अनगढ़

आधा और अधूरा लिक्खूं।।

या कुछ और प्रतीक्षा करके

जो लिक्खूं वह पूरा लिक्खूं।।

खुसरो ग़ालिब मीर कहूँ या

तुलसी सूर कबीरा लिक्खूं।।

धनपत राय न बन पाउँगा

कम लिक्खूं या ज्यादा लिक्खूं।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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